परमेश्वर का मानव-जाति से मेल
पाप र मनुष्य जाति में है, और मनुष्य स्वयं निर्मित मोक्ष-मार्गों से कदापि मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है इसीलिए परमेश्वर ने मानव जाति के मोक्ष के लिए एकमात्र अद्भुत व महत्वपूर्ण योजना बनाई। जो अतुल्य थी। उस योजना से सर्वोत्तम और कोई योजना नहीं हो सकती थी। वह योजना यह थी कि मैं (परमेश्वर) स्वयं ही सम्पूर्ण मानव जाति के मोक्ष के लिए पृथ्वी पर मानव-रुप में अवतार लूंगा। मेरा प्रतिरुप (अवतार) जो पृथ्वी पर अवतरित होगा उसका नाम ‘यीशु’ होगा और जो कोई भी ‘यीशु’ में पूर्ण हृदय से विश्वास’ करेगा व उन्हें ‘प्रभु’ व ‘मोक्षकर्ता’ के रुप में ‘स्वीकार करेगा उसी का मोक्ष होगा अर्थात् वह पाप-दण्ड से मुक्त होकर अमरता को प्राप्त करेगा। (कृपया पढ़ते हुए इस मूल विचार को कदापि न भूलें, कि जहां भी ‘यीशु’ शब्द आये वहां पर परमेश्वर को अवश्य स्मरण रखें, क्योंकि परमेश्वर ने मात्र यीशु ही के रूप में पृथ्वी पर मानव रूप में जन्म लिया था अर्थात् यीशु पृथ्वी पर परमेश्वर का ही प्रतिरुप (छाया) थे।)
परमेश्वर ने यीशु के अद्भुत जन्म, स्थान व कारण को उनके जन्म के सैंकड़ों वर्ष पूर्व ही अपने भक्त-सेवकों के माध्यम से लोगों को अवगत कराते रहे। लोग वर्षों तक अपने मोक्षदाता के आगमन की प्रतीक्षा करते रहे, कि वह उनके पापमय जीवन से छुटकारा देंगे। जब यीशु के जन्म का समय आया। वह इस प्रकार से है-
यीशु के जन्म से पहले
(यीशु के जन्म की यह सत्यता लगभग 2023 वर्ष पूर्व मध्य-पूर्व एशिया के इसाइल देश में घटित हुई थी।)
जब यीशु के जन्म का समय समीप आया, तो उनके पृथ्वी पर जन्म लेने से पूर्व परमेश्वर ने एक स्वर्गदूत को एक कुंवारी स्त्री के पास भेजा, जिनका नाम ‘मरियम’ था। स्वर्गदूत ने मरियम से कहा- ‘हे प्रभु की कृपापात्री नमस्कार, प्रभु आपके साथ है मरियम घबरा गई।
स्वर्गदूत ने मरियम से कहा- हे मरियम भयभीत न हो. क्योंकि तुम पर परमेश्वर की कृपा हुई है, तुम गर्भवती होगी।** और एक पुत्र को जन्म दोगी और तुम उनका नाम ‘यीशु’ रखना। वह महान होगें और वह परमेश्वर के पुत्र कहलायेंगे। मरियम ने स्वर्गदूत से कहा- यह कैसे संभव हो सकता है? क्योंकि मैं तो कुंवारी ही हूँ।
स्वर्गदूत ने उत्तर दिया- ‘परमेश्वर के पवित्रात्मा का सामर्थ आप पर उतरेगा,
इसी कारण वह पवित्र-पुत्र जो उत्पन्न होगें, वह परमेश्वर-पुत्र कहलायेगें, क्योंकि परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।”
मरियम ने स्वर्गदूत से कहा- ‘मैं तो प्रभु की दासी हूँ, आपके वचन के अनुसार ही मेरे साथ हो तब स्वर्गदूत मरियम के पास से चला गया।
मरियम की मंगनी यूसुफ नामक एक पुरुष के साथ हो चुकी थी, परन्तु विवाह नहीं हुआ था। यूसुफ भले व परमेश्वर का भय मानने वाले व्यक्ति थे। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि मरियम गर्भवती है, तो मरियम को चुपचाप बिना बदनाम किये, त्याग देने का विचार अपने मन में किया, क्योंकि उनको स्वर्गदूत और मरियम के मध्य हुई वार्तालाप के विषय में कोई जानकारी नही थी। परन्तु परमेश्वर के एक स्वर्गदूत ने यूसुफ को स्वप्न में कहा- हे यूसुफ, तुम भरियम को अपनी पत्नी बनाने से मत डरो, क्योंकि जो उनके गर्भ में है वह पवित्रात्मा की ओर से है। वह एक पवित्र-पुत्र को जन्म देगी और तुम उनका नाम ‘यीशु’ रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से मोक्ष करेंगे।’ (इसका अर्थ यह हुआ कि यीशु का जन्म एक मोक्षदाता का जन्म है।) तब यूसुफ स्वर्गदूत की आज्ञा के अनुसार मरियम से विवाह करके उन्हें अपने घर में ले आये और तब तक मरियम के पास नहीं गये, जब तक मरियम ने यीशु को जन्म नहीं दिया।
यीशु मसीह के जन्म स्थान
*उन दिनों में रोम का साम्राज्य था और एक अधिकारी ने जनगणना की घोषणा की, कि लोग अपने-अपने नगर में जाकर नाम लिखवायें,
*सो यूसुफ व मरियम भी अपना नाम लिखवाने बैतलहम’ नामक गांव में गये।
*उनको गांव में ठहरने के लिए कोई जगह नहीं मिली।
*उन्हें एक गौशाले में ठहरना पड़ा।
*वहां रहते हुए मरियम के प्रसव के दिन पूरे हुए और मरियम ने उस पवित्र बालक (यीशु) को एक गौशालें में जन्म दिया और उन्हें कपड़े में लपेटकर चरनी में रख दिया।
*उस प्रदेश में चरवाहें थे। वे रात को मैदान में रहकर अपने झुण्डों की रखवाली कर रहे थे।
*सहसा प्रभु का एक स्वर्गदूत उनके सामने आकर खड़ा हो गया और प्रभु का तेज उनके चारों ओर चमकने लगा।
*चरवाहे भयभीत हो गये। तब स्वर्गदूत ने चरवाहो से कहा – ‘भयभीत न हो! देखों मैं तुम्हें बड़े आनन्द का शुभ संदेश सुनाता हूं।
*जो सभी (हर -जाति) लोगों के लिए होगा। आज तुम्हारे लिए बैतलहम में एक मोक्षकर्ता ने जन्म लिया है और
*यही प्रभु मसीह यीशु है।
* तुम्हारे लिए यह चिह्न होगा, तुम उस बालक को कपड़े में लिपटा और चरनी में लेटा हुआ पाओगे।’
*तब एकाएक उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का एक समूह परमेश्वर की स्तुति करते हुए ओर यह कहते हुए दिखाई पड़ा ‘स्वर्ग में परमेश्वर की महिमा हो और पृथ्वी पर मनुष्यों में शांति हो, जिनसे वह प्रसन्न है।
*जब स्वर्गदूत उनसे विदा होकर स्वर्ग चले गये, तब चरवाहे उस बालक के दर्शन करने पहुंचे और जैसा स्वर्गदूत ने कहा था उन्होंने वैसा ही पाया। उसके उपरांत चरवाहे परमेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गये।
आपका मुख्य व व्यक्तिगत निर्णय
*परमेश्वर तो यीशु के माध्यम से आपसे मेल करना चाहते हैं, परन्तु यह मेल अधूरा है,
*क्योंकि पापकी ओर से अभी मेल नहीं हुआ है।
*यह मेल तभी संभव है जब आप भी आगे बढ़कर “दीशु के माध्यम से अपना हाथ बढ़ाये।
*इस रीति से आप परमेश्वर के साथ मेल कर सकते हैं।
*यदि आप परमरेवर से मेल करना चाहते हैं और आपकी इच्छा है, कि मनुष्य कैसे परमेश्वर के साथ मेल करे?
*तो प्रत्येक मनुष्य को व्यक्तिगत रीति से इन तीन विशेष बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक है।
1. पश्चाताप –
* मैं पापी हूँ और मैंने अनुचित कार्य किये है।
2 . विश्वास
* मैं पूर्ण हृदय से प्रभु यीशु में विश्वास रखता हूँ, कि उन्होनें मेरे पापों के बदले में अपना बलिदान दिया अर्थात वह मेरे पापों के लिए भी बलिदान हुए हैं।
* यीशु ही मात्र मेरे मोक्ष का सिद्ध-मार्ग है।
3. स्वीकार करना –
* यीशु ही मेरे ‘प्रभु’ और ‘मोक्षकर्ता” है
*यदि आप इन तीनों बातों को ‘विश्वास’, ‘पश्चाताप’ व “स्वीकार करना” को मानते हैं,
*तो आप अपने पूर्ण हृदय से व मुँह खोलकर परमेश्वर से यह प्रार्थना कर सकते है-
*हे स्वर्गीय पिता परमेश्वर मैं आपके समीप आता हूँ।
*मैं स्वीकार करता हूँ, कि मैं एक पापी है मैंने अनुचित कार्य किये है।
* मैं अपने समस्त पापों को मानता हूँ और अपने समस्त पापों से पश्चाताप करता हूँ।
*आप मुझे मेरे समस्त पापों से क्षमा करें और मेरे सब पापों को मुझ से दूर करें।
*मैं पूर्ण हृदय से प्रभु यीशु में विश्वास रखते हुए धन्यवाद देता हूँ। कि उन्होनें मेरे पापों के बदल में अपना बलिदान दिया अर्थात तह मेरे पापों के लिए भी बलिदान हुए हैं।
*केवल यीशु ही मेरे मोक्ष का उत्तम मार्ग हैं। मैं यीशु में पूर्ण विश्वास करता हूँ और केवल उन्हें ही अपना व्यक्तिगत-रीति से *’प्रभु’ व ‘मोक्षकर्ता’ के रुप में स्वीकार करता हूँ और अन्य किसी को नहीं।
*मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं जीवन भर यीशु के पीछे चलूंगा और उनकी समस्त शिक्षाओं का पालन करूँगा।
*हे स्वर्गीय पिता, मुझे ग्रहण करें और सामर्थ दें,
*कि मैं कभी भी फिर से पाप न करूँ।
*मैं अपने जीवन को आपके हाथ में सौंपता हूँ मुझे शुद्ध करें, *अपने पविन्त्रात्मा का दान दें तथा अपन पवित्रात्मा के माध्यम से मेरे अगामी जीवन का मार्गदर्शन करें।
*मुझे क्षमा करने के लिए धन्यवाद। यीशु के नाम में ऐसा ही हो- आमीन
. 1- मोक्ष क्या है ?
*मोक्ष का अर्थ है, ‘पाप-दण्ड से छुटकारा’।
*क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में समस्त मनुष्य-जाति पापी है।
*इस कारण से परमेश्वर ने ही समस्त मनुष्य जाति पर पाप-दण्ड निर्धारित किया है
*और वह पाप-दण्ड ‘मृत्यु’ है अर्थात सर्वदा के लिए परमेश्वर से दूर हो जाना।
* परमेश्वर के पवित्र-शास्त्र ‘बाइबल’ में लिखा है-
पाप की मजदूरी तो मृत्यु है।
*परमेश्वर ने एक दिन निर्धारित किया है, जब वह समस्त मनुष्य जाति का न्याय बिना भेद-भाव के
*करेगें। जो पापी घोषित होगा, उसे सर्वदा के लिए नरक-कुण्ड में फेंक दिया जायेगा। जिससे
*आत्मा-दण्डित हो और यह अत्यन्त पीड़ा-दायक होगा।
*इस दण्ड से छुटकारा प्राप्त होना ही ‘मोक्ष’ कहलाता है।
*इसलिए मनुष्य को चाहिए कि इससे पहले कि वह इस संसार को छोड़कर जाये अर्थात मृत्यु जाये।
* उससे पहले वह मोक्ष को प्राप्त कर लें,
* क्योंकि मृत्यु के उपरांत उसका मोक्ष किसी भी कर्म-काण्ड, रीति-रिवाज़ से नही हो सकता है। वह अवश्य ही दण्डित होगा।
.2-पाप क्या है?
‘पाप परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करना है। परमेश्वर पवित्र है और वह पाप से घृणा करते है। उनकी दृष्टि में पाप का जीवन पतित-जीवन है। वह किसी भी रुप से पाप के साथ समझौता नही कर सकते है।
आइये पाप की प्रवृति से अवगत हो। पाप मनुष्यों में है और वह स्वामी की भांति मनुष्यों को अपने नियंत्रण में रखता है। पाप हमारी आत्मा को दूषित करता है। पाप में इच्छा-शक्ति होती है तथा वह मनुष्यों से पाप कराने की सर्वदा लालसा रखता है। पाप कुकर्म करवाता है। पाप दुःख देता है। पाप भटकाता है। पाप अंधा करता है। पाप सम्बन्धों में विघटन लाता है। पाप शक उत्पन्न करता है। पाप शर्मिन्दा करवाता है। पाप विश्वासघात करवाता है। पाप विद्रोह कराता है। पाप घमंड को उत्पन्न करता है। पाप अनाज्ञाकारी बनाता है। पाप विवेकहीन करता है। पाप मूर्ख बनाता है। पाप अज्ञानी बनाता है। पाप पाखण्डी बनाता है। पाप जीवन को दूषित करता है। पाप बुरी लालसाओं को उत्पन्न करता है। पाप सही चुनाव करने का मार्गदर्शन नही करने देता है अपितु सही चुनाव करने की क्षमता को भी क्षीण करता है।। पाप मनुष्यों को पापी, अधर्मी, कुकर्मी, दुष्ट व अपराधी के नामों से विभूषित करता है।
पाप का यह जीवन मनुष्यों को सर्वदा परमेश्वर के विरोध में खड़ा करता है। परमेश्वर नही चाहते कि मनुष्य की ऐसी दयनीय दशा हो। परमेश्वर मनुष्यों की अपेक्षा पाप की सच्चाई को पूर्ण रीति से जानते हैं। पाप का जीवन पूर्ण अंधकार का जीवन होता है। उसमें कुछ भी स्पष्ट दिखाई नही देता है। पाप बुद्धि, आचरण, व्यवहार को भ्रष्ट करता है। पाप वास्तव में मनुष्यों को भ्रष्ट कर देता है और उनके जीवन को नारकीय बना देता है परन्तु परमेश्वर मनुष्य को पाप के नियंत्रण से बाहर निकालकर उसके स्तर को ऊँचा ऊठाने की प्रबल इच्छा रखते है।
3- मन-परिवर्तन क्या है?
उत्तर- मन के विषय में पवित्र-शास्त्र ‘बाइबल’ में इस प्रकार लिखा है- ‘मनुष्य के मन बुराई से भरे रहते हैं।’
*’सबसे अधिक अपने मन की रक्षा कर, क्योंकि जीवन का मूल-स्रोत वही है।’ ‘मन तो सब वस्तुओ से अधिक धोखेबाज़ होता है और असाध्य रोग से ग्रस्त है। उसे कौन समझ सकता है?’
*कोई भी विचार (किया) सर्वप्रथम भीतर (मन में) उत्पन्न होता है और उस विचार का वाह्य प्रकटीकरण शरीर के द्वारा अर्थात ‘कर्म’ के रूप में होता है। इस प्रकार ‘क्रिया’ पहले होती है और उसके उपरांत ‘कर्म’ प्रकट होता है। मनुष्य ‘कर्म’ को प्रधान मानता है। जबकि परमेश्वर के दृष्टिकोण के अनुसार ‘क्रिया’ प्रधान है, जिसकी उत्पत्ति भीतर अर्थात मन से होती है। जो मूल-स्रोत है, वह मन ही है। प्रभु यीशु ने कहा है-
*’जो मन में भरा होता है वही मुंह पर आता है। भला मनुष्य अपने भले भण्डार (मले मन) से भली बातें निकालता है और बुरा मनुष्य बुरे भण्डार (बुरा मन) से बुरी बातें निकालता है। जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। क्योंकि भीतर से अर्थात मनुष्य के मन से कुविचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, और दुष्टता के काम. छल, कामुकता, ईर्ष्या, निन्दा, अहंकार और मूर्खता निकलती है। ये सभी बुराईयां भीतर से निकलती है और मनुष्य को अशुद्ध करती है।’
*मनुष्य कितना भी धर्म-परिवर्तन कर ले उसका भला कदापि नहीं हो सकता है, क्योंकि धर्म-परिवर्तन करने से पाप-स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं होता है। विभिन्न धर्मो में विभिन्न रीति-रिवाज़ व कर्म-काण्ड होते है परन्तु वे सभी असक्षम है। अतः परमेश्वर की रूचि धर्म-परिवर्तन की अपेक्षा मन-परिवर्तन में है। धर्म-परिवर्तन मनुष्य का इलाज नही अपितु मन-परिवर्तन ही है।
Pastor
Karan Mashi
ReplyForwardAdd reaction |